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Sunrise 🌄🌞
Today’s sunrise says always be wise ,
with yours excellence make your day nice,
Each human is invaluable let that truth realize!
Everyone unique and never underestimated someone’s price!
Mistakes are not loss if we will learn and open our eyes!
Even if we fall it doesn’t means we will never arise!
We will be successful if failure reasons truly analyse!
do something worthy and give everyone surprise!
In matter of purity and honesty never compromise!
To save our love and relationships don’t shy for apologize!
©️ Kamalesh Ravishankar Raval
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संस्कृति
संस्कृति बचाना, किसी पक्ष की ज़ायदाद नहीं,
चल चित्रों के विरोधी, धरोहर संवारने आमाद नहीं
(आमाद = ईच्छा शक्ति)
कुछ सालों से और पिछले दो दशकों से ख़ास तौर पर आए दिन संस्कृति के जतन के नाम पर कहीं उत्सवों पर नियंत्रण लाद दिया जाता है, कहीं कलाकार और कला के प्रदर्शन पर विरोध होते हैं, मैंने ये सब तटस्थ भाव से देखा है , और आज फिर वही निर्लेप्ता और निष्पक्षता के साथ मेरा अपना पक्ष रख रहा हूं, लेख के शुरुआत में ही मैं बता देता हूं की मैं शाहरुख खान के तमाम करतूतों का प्रखर विरोधी हूं हालांकि जब शाहरुख टीवी कलाकार था और ९० के दशक की फ़ौजी सीरियल जो दूरदर्शन पर आती थी तब मैं उस का प्रशंसक था पर वो शाहरुख ३४ साल पहले छूट गया है,
अब हम वर्तमान की बातें करें तो सभी जानते हैं की #पठान मूवी के गाने के फिल्मांकन का प्रखर विरोध कुछ लोग कर रहे हैं जो भूतकाल में वैलेंटाइन डे, और क्रिसमस के त्यौहार के विरोध कर के प्रेमी युगल और आम जनता में दहशत का माहौल खड़ा करते थे और अपनी मनमानी चलाते थे, हकीकत में त्यौहार, उत्सव, कला प्रदर्शन लोगों के मनोरंजन के उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए होते हैं , तनाव और भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कुछ पल अपने ख़्वाबों में खोने का, अपने गमों को भूला के खुशियों में झूमने का और सपनों को संवारने का मौका हमें दृश्य श्राव्य माध्यमों और उत्सवों के जरिए प्राप्त होता है
हकीकत में कुछ लोग जो संस्कृति को जानते नहीं समझते नहीं वही लगातार सिर्फ विरोध के नाम पर अपनी दुकान चलाते हैं, असामाजिक तत्व संस्कृति के जतन के नाम पर सिर्फ पैसा कमाने आड़ी टेढ़ी हरक़त करते हैं, वो भूल गए हैं कि कला और साहित्य मे श्रृंगार रस नव रसों मे शामिल है, वो भूल गए है की अभिज्ञान शाकुंतलम, वात्सायन के कामसूत्र, खजुराहो के शिल्प, रानी की वाव, मोढ़ेरा के सूर्यमंदिर के शिल्प, परंपरा गत वसंतोत्सव, होली के त्यौहार भारतीय संस्कृति की धरोहर है, धर्म अर्थ काम और मोक्ष का संतुलन मनुष्य जीवन का सहारा है, तो कला के विरोधी अपनी जड़ें मत खोदो नहीं तो तालिबान और आप में कोई फर्क नहीं रह जाएगा जिन्हों ने भगवान बुद्ध की हज़ारों प्रतिमाओं को खण्डित कर के खुद की धरोहर उजाड़ दी
मैं मानता हूं कि लव ज़िहाद जैसी प्रवृत्तियों का विरोध होना चाहिए , पर वैवाहिक जीवन सब का एक निजी अधिकार हैं, जब दो वयस्क लोग अपनी मर्जी से शादी करते हैं उन्हें वैधानिक अधिकार प्राप्त है, सुखी लग्न जीवन अच्छा समाज बनाता है इसलिए कोई एक बुरे मकसद से जैसे की दहेज के लिए या धर्मान्तरण हेतु जब विवाह होता है उस का विरोध होना चाहिए पर कला, संगीत, और उत्सवों को उस के लिए प्रताड़ित न करो, जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है वही सुंदर है!
वैदिक संस्कृति यही सिखाती है कि जो सत्य हो , जो समाज के लिए कल्याणकारी हो उस का चारों दिशाओं से स्वागत हो और उसे समाहित किया जाए यही आज के समय की जरुरत है, मांग है , वसुधैव कुटुंबकम् का उद्देश्य हांसिल करना होगा तो हमें सत्य का स्वीकार करना होगा!
सत्यम शिवम सुंदरम!!!!
अस्तु!!!
©️ Kamalesh Ravishankar Raval
Posted in प्रक्रुति और ईश्वर, हिन्दी
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हाथ रुमाल
#लघुकथा #हाथरूमाल
ओणम का दिन था, मलबार के सारे सहयोगी प्रसन्न चित्त दिखाई दे रहे थे, परंपरागत वेशभूषा में शनिवार को काफ़ी ऑफिस स्टाफ आया था, उस दिन बाकी स्टाफ गण भी काफ़ी उत्साहित थे, दोपहर का भोज मेरी ऑफिस के सारे सदस्य गणों ने साथ लिया, कलन करी, जीरा चावल, सांभर, अवियल, रसम, खीर (पायसम), पापड़म, खट्टा रायता और विधविध व्यंजन का ज़ायका आज सब को पसंद आया, केले के पत्ते पर शुद्ध सात्विक आहार का आनंद अप्रतिम था!
खाने के पश्चात मैं भी केल के पत्ते को ऑफिस के बाहर डस्टबिन में फेंकने गया, वहां मुझे एक हाथ रूमाल दिखा, हालांकि ये हाथरूमाल मैंने शुक्रवार के दिन भी कूड़े दान के पास गिरा हुआ देखा था, एक बार सोचा भी उठा कर कूड़ेदान में फेंक दूं, पर कॉरोना के बाद किसी के निजी वस्तुओं का स्पर्श करने से मैं कतराता हूं, आज शनिवार को वो हाथ_रूमाल मैंने उसी स्थान पर ही पड़ा हुआ देखा, केल का पत्ता कूड़े दान में डाल कर मैं जैसे ही मूड़ा मेरे सहयोगी राधा कृष्णन जी भी कूड़े दान में केल का पत्ता भोजन पश्चात फेंकने आते हुए दिख गए, मैंने स्वभाव वश बोला की सर देखो ये हाथ रूमाल कोई बहार फेंक कर गया है, रूमाल देखते ही राधा कृष्णन जी बोले ये तो मेरा है , मैं उसे कल दोपहर से ढूंढ रहा हूं, शायद कल मेरे पॉकेट से गिर गया होगा, मुझे भी खुशी हुई कि हाथ रूमाल का सही मालिक मिल गया, यदि मैंने उसे उठा कर कूड़े दान में डाल दिया होता तो राधाकृष्णन जी को ये कभी वापस नहीं मिलता, मुझे परम संतुष्टि हुई पहली बार ! कुछ काम कभी न करना भी बेहतर होता है!
पर मेरे ये खुशी सोमवार को छलना साबित हो गई जब मेरे प्रवेश के साथ मैंने जैसे ही सहयोगियों को मेरे नित्य कर्म अनुसार सुबह का गर्मजोश अभिवादन किया तो किसी ने प्रतिभाव नहीं दिया, मुझे दू:खद आश्चर्य हुआ, थोड़े पल में मेरा ड्राइवर आया , जो सिर्फ अंग्रेज़ी ही जानता है, उसे मैंने पूछा कि रविवार को उस ने मेरे कॉल का प्रतिभाव क्यों नहीं दिया, उस ने मुझे एक ही वाक्य कहा “don’t you know what happened yesterday?” ( कल क्या हुआ पता नही आप को?) मैंने नकार मे सर हिलाते ना कही, तो धीरे से उस ने मेरे कान में आ कर कहा सर, “Mr. Radha Krishnan is no more, he had severe pain and vomiting on Sunday early morning and he died before ambulance reach to his house, I went hospital with his dead body!”
मेरे लिए ये आघात जनक खबर थी , मेरी कैबिन के सामने में ही बैठने वाले राधाकृष्णन जी अब इस दुनिया में नहीं रहे थे, मैने मेरी सामने की खुली कैबिन पर नज़र की, कुर्सी खाली थी , और टेबल पर वो हाथ रूमाल वापस दिख गया जो राधाकृष्णन जी ने शनिवार को मेरे सामने उठाया था और वापिस टेबल पर ही भूल कर उस हाथ रूमाल को और ये फानी दुनिया को छोड़ गए !
©️ कमल की कलम से
Posted in लघु कथा, story
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મચ્છુ
ભૂલી ગઈ તું સન ૧૯૭૯ માં હજારો ને ગઈ ‘તી તાણી?
મચ્છુ તો’ યે તારી તરસ હજી કેમ ના છીપાણી?
તહેવારો ના તાકડે તે લોકો ની ઉજાડી દિવાળી,
શું ભૂલકાં, શું જવાન, સંધાય ને સાગમટા ગઈ ડૂબાડી,
મચ્છુ તો’ યે તારી તરસ હજી કેમ ના છીપાણી?
ઝૂલતાં હતા ને હરખતા હતાં જોઈ ને લોકો તારું પાણી,
પૂજતાં હતાં ને ઝૂમતાં હતાં મોરબી વાસી તને માવડી જાણી,
મચ્છુ તો’ યે તારી તરસ હજી કેમ ના છીપાણી?
ખોળો તારો ખૂંદનાર ને તારી કૃપા નહીં ફરી ક્રૂરતા દેખાણી,
લોકમાતા તું ફરી પાછી કોની ભૂલે ગઈકાલે લજવાણી?
મચ્છુ તો’ યે તારી તરસ હજી કેમ ના છીપાણી?
તું જ કહે રાખવી હવે કેવી રીતે હામ?
સ્વજન ગુમાવ્યાં એમને રૂપિયા નાં શાં કામ?
શિશુ ની જીંદગી ના કરી શકે કોઈ દામ?
આંખો બેન ની, માવડી ની વાટલડી જોઈ ને થાકી છે,
બાળકો એ નજરો મા_બાપ સારું રસ્તા ઉપર માંડી છે,
કોઈ નો ભાઈ, કોઈ નો ભરથાર હજી મળવા નો બાકી છે,
સ્મશાન ને કબ્રસ્તાન માં તે તો મોત ની હાટડી બાંધી છે
ભૂલી ગઈ તું સન ૧૯૭૯ માં હજારો ને ગઈ ‘તી તાણી?
મચ્છુ તો’ યે તારી તરસ હજી કેમ ના છીપાણી?
©️ કમલેશ રવિશંકર રાવલ
Posted in संवेदना, ગુજરાતી
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પ્રસાદ
જ્યાં સાગર ની છોળો માં હર ઘડી પંચજન્ય નો નાદ છે,
વિશ્વ ના હર ખૂણે ખૂણે સર્વદા શ્રીકૃષ્ણ નો ધન્ય સાદ છે,
કરું છું કામ સૌ, કર્મ ને ધર્મ માની, નિષ્ઠા અને કુનેહ પૂર્વક,
રહું છું સ્થિતપ્રજ્ઞ સુખે_દુઃખે, એ તો શામળિયા ના પ્રસાદ છે
મળે એને મન ભરી ને માણું છું, હર શ્વાસે હરી નો સાથ જાણું છું,
નથી કોઈ સફળતા નો કેફ, ના હૈયે નિષ્ફળતા નો કોઈ અવસાદ છે
શીખ્યો છું પ્રેમ, મિત્રતા ને કર્મ, અપનાવ્યો છે જીવન માં સત્ય ધર્મ,
માનું છું કે અધર્મ અને અસત્ય નો એક દિ’ અવશ્ય ઉત્સાદ છે
ધરી દીધું છે જીવન મારું મેં તો ગોવિંદ ના જ ચરણકમળ માં,
તેથી *કમલ* ના આંગણે કાયમ કાના ની કૃપા નો વરસાદ છે
©️ કમલેશ રવિશંકર રાવલ
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Childhood
In their childhood most of children wish to be Robin hood,
In their hearts innocent remains like touch wood,
They never have stress, they always have grace,
they never affraids from problem to face, They are always remains in mood
Let you try to observe any kid in the street, you will find him full of confidence and ready to retreat.
They will love to feed,
They will love to lead,
they will forget their need and will feed friends his / her food
Almighty generally never disappointing someone without cause.
Destiny helps them surely who works hard and keep Intentions are good.
©️ Kamalesh Ravishankar Raval
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पिता
सहरे की असहनीय धूप को भी सहता है पिता,
ग्रीष्म की गर्मी में गुलमहोर सा निखरता है पिता
भले हो भीगा, उन का प्रस्वेद से लथबथ तनबदन,
फिर भी मेहनत की खुशबू से महकता है हर पिता,
ज़िंदगी की भगदौड़ में परिवार को कायम अव्वल रखने,
सुबह_शाम, रात_दिन, ठंडी_गर्मी में मचलता है पिता
मिल सके मंज़िल और रोटी, घर परिवार और अपने रिश्तेदारों को,
जिम्मेवारियों का बोझ ढोता फिर भी मुस्कुराता, गलियों में भटकता है पिता
उन का साथ तकलीफ़ में सहारा, उन का तजूर्बा सब से न्यारा,
उन का दिलासा सब से है प्यारा, मुश्किल की घड़ी में सुकून की छांव, शीतलता है पिता
देना पड़े बदकिस्मती से कभी औलाद के जनाजे को कंधा,
उस पल फ़ौलादी जिगर वाला, माला के मोती सा बिखरता है पिता,
“कमल” के जिस्मों ज़हन में कभी ख्वाब, कभी रूबाब हो के,
हरघडी, हरपल बिना रुके बिना टोके, अविरत धड़कता है पिता
©️ कमलेश रविशंकर रावल
Posted in दोस्ती और जिंदगी ..., हिन्दी
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मां
तू ही है मेरा जहां, तुम बिन मैं जाऊं कहां?
तेरी गोद सी जन्नत और कहीं मैं पाऊं कहां?
तेरे हाथ का निवाला, प्यार भरा चांदी का प्याला,
मेरी मनपसंद हर रसोई, बिन तेरे संग मैं खाऊं कहां?
तेरे गाने की लोरी, झूले की ममता की डोरी
ज़िंदगी के जीत के गीत तेरे बगैर अब मैं गाऊं कहां
छू लिया है तेरे आशीष से आसमां भी अब तो,
फतह का लहराता परचम दिखाने तूझे मैं लाऊं कहां?
चल बसी तू कहां तेरे हिस्से का सौ गुना प्यार दे के?
वो ममता की छांव पाने बिन पते अब मैं आऊं कहां
© कमल की कलम से
Posted in संवेदना, हिन्दी
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destinationmanagement
From where we came and where we go?
that God only knows,
he send us on earth to achieve the best!
for staying we have built the nest,
One day wee need to flew away!
why we should loose today in worry of death either its near or faraway?
give the best to your birds,
so they can sweetly chirps!
enjoy the life, single moment we should never waste,
when death coming soul must have to smile n go for eternal rest!!!!
let travel the life journey,
when it will break no one knows!
Destination and timing is in the hands of God,
so enjoy the journey without keeping much stress, burden or load…!!
© Kamalesh Ravishankar Raval
Posted in प्रक्रुति और ईश्वर
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तमाम
रोज़ वही सुबह और वही शाम होती है,
ज़िंदगी ख्वाहिशों के नाम तमाम होती है
करते हैं सियासत अपने वजूद के खातिर,
मिले गरीब को रोटी ऐसी न इंतमाम होती है
इल्ज़ाम ना लगाओ सिर्फ हुकुमत पे ही यारों,
सरकार वैसी ही बनती है, जैसी ही आवाम होती है
मिल जाते हैं इतरा सिर्फ बदन को महकाने यहां,
इंसानियत महकाए ऐसी कहां किमाम होती है?
मिली है कामयाबी मेहनत और हौसलों से,
रोटे है वही, कोशीशें जिन की नातमाम होती है
कमलेश रविशंकर रावल
Posted in दोस्ती और जिंदगी ..., हिन्दी
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