तमाम

रोज़ वही सुबह और वही शाम होती है,
ज़िंदगी ख्वाहिशों के नाम तमाम होती है

करते हैं सियासत अपने वजूद के खातिर,
मिले गरीब को रोटी ऐसी न इंतमाम होती है

इल्ज़ाम ना लगाओ सिर्फ हुकुमत पे ही यारों,
सरकार वैसी ही बनती है, जैसी ही आवाम होती है

मिल जाते हैं इतरा सिर्फ बदन को महकाने यहां,
इंसानियत महकाए ऐसी कहां किमाम होती है?

मिली है कामयाबी मेहनत और हौसलों से,
रोटे है वही, कोशीशें जिन की नातमाम होती है

कमलेश रविशंकर रावल
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मय

मय को भी मुझ से पहली बार में यारी हो गई,
महबूबा की तरह मुझ से जान से प्यारी हो गई

इल्म घूला है या छीपा है जादुई करिश्मा शराब में,
छूते ही लबों को सारी दुनिया  उजियारी हो गई

कौन कहता है कि मधुशाला सिर्फ़ काफ़िर जाते हैं?
मेरे लिए वो मंदिर_मस्जिद, गिरजा और अगियारी हो गई

निकाला जब नफ़रत का घासफूस दिलों दिमाग़ से
ज़हन में मेरे मोहब्बत के गुलों की क्यारी हो गई

फक्र करें तो कैसे करें रिश्तों का “कमल” अब तो,
मरने से पहले ही धर में कफ़न की तैयारी हो गई

© कमलेश रविशंकर रावल

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गुलाल

उन की आशिकी में हम हलाल हुए
फ़ना हो कर जग में जलाल हुए

माना कि हार गए खेल मुहब्बत का
फिर भी ना कोई मन में मलाल हुए

भूला ना पाए वो कभी दास्तां हमारी
पढ़े जो खत खून के आंसू से लाल हुए

बना लिए ईश्क को ही ईबादत हमने
कभी वो अज़ान तो कभी बिलाल हुए

ख़ाक हो गए तो भी क्या हुआ कमल
बन कर मिट्टी, हम उन पे गुलाल हुए

© कमलेश रविशंकर रावल

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ख़बर

तेरी ख़बर के बग़ैर मेरी फ़ज़र नहीं होती,
तेरे दिल को क्यूँ, ये ख़बर की ख़बर नहीं होती

मशरूफ हो फिर भी चाँद सी झलक दिखला जाओ,
जिंदगी की सारी रात इंतजा़र में बसर नहीं होती

कायनात भी करती है मकसद पूरा करने मदद,
कोशिशों में जब अपनी कहीं कसर नहीं होती

कूबूल होती है हर पाक दुआ मौला के दरबार में,
बस बदनियत से हुई दुआओं की असर नहीं होती

हौंसला ना हार, चलता रह मंजि़ल की तरफ कमल
ईमान से की गई ईबादत कभी बे-असर नहीं होती

© कमलेश रविशंकर रावल

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ताज़गी

तुम मेरे दिल के करीब आके अब मुझ से यूं दूर जाओ ना,
जैसे मैं आ रहा हूं तुम्हारे करीब तुम भी मेरे पास आओ ना

गुनगुना रहें है होठ मेरे खुशी से मिलन की मस्ती भरे गीत,
तुम भी संग मेरे प्यार भरा एक नगमा खुशी से गुनगुनाओ ना

आ गया है बहारों का मौसम,
भा गया है सब को ये मौसम,
छा गया है फिज़ा में ये मौसम, हरियाली हो कर तुम मेरे दिल पे छाओ ना

क्यूं तुम रूखे रूखे हो,

भरी जवानी में क्यों सूखे सूखे हो,
सांसों में भर लो ताज़गी मेरी,
महंक हो के मेरे मनमस्तिष्क महकाओ ना

आंखों में पढ़ो ईश्क की आरज़ू,
महसूस करो प्यार की खुशबू,
महफूज़ रखो मुहब्बत की जुस्तजू,
बांहों में भर तुम रूह को जिस्म के करीब पाओ ना

© कमलेश रविशंकर रावल

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નવું વરસ

નવું વરસ આપ સૌનું વિતે સરસ,
વેર કલેશ ઘટે, પ્રેમ વધે અરસપરસ

ના મરે વિશ્વ માં કોઈ ભૂખ્યું તરસ્યું,
છીપે સૌની આરોગ્ય અમૃત ની તરસ

રોગ મટે તન_મન ના, ધર ભરે ધન ના,
છૂટે સૌના દારૂ_ તમાકુ ને ગાંજા_ચરસ

છોડીએ લોભ_મોહ ને અહંકાર કાયમ,
માણસાઈ ની જ ભેગી કરીએ જણસ

નડીએ ના કોઈ ને, રડીએ ના ખોઈ ને,
કરી મહેનત, લણીએ સિદ્ધિ ની ફણસ

© कमल की कलम से

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Wild Rose

O my wild Rose , o my wild Rose,
Your fragrance reach to heart from nose

Don’t be away from me,
Let you pray for me,
Allow me touch you,
I love so much you,
O my wild Rose, omy wild Rose,
Come more n more close.

You are beautiful and bright,
I can feel there divine light,
Your presence creates amazing site,
You are the shining star of dark night
O my wild Rose , o my wild Rose,
your love helping me to  My dream grows.

You are making my sensation alive,
You are filling hope  to emotions survive
You are taking me for dreams long drive
M feeling in your arm alive
O my wild Rose , o my wild Rose,
In your company my happiness flows

Let me explore you from nose to toes,
Let me odor you like dose to close
Let me froze with you in hugging pose
Let me owes you whole and  gross
O my wild Rose , o my wild Rose,
I want to be perfect lover who wants remain ever arose

©  Kamalesh Ravishankar Raval

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नियाज़

भरी भीड़ में भी वो तन्हा क्यों है उस का राज़ ना पूछो,
नाखुश है जमाने से? या है ख़ुद से ही है नाराज़? ना पूछो!

मिलता नहीं सभी को जादुई चिराग़, सीने में होती है जज्बे की आग,
तभी खिलता है सहरे में एक बाग, समझो जरा, फैयाज़ ना पूछो

नहीं गा सकता हर कोई मिठी आवाज़ में, सूर तो छिपे है हर साज़ में,
तारीफ़ करो फन की, बुलंदी तक पहुंचने कितना किया है रियाज़ ना पूछो

ईश्क का सहरा तरसता क्यूं है, समंदर में ही अक्सर वो बरसता क्यूं है?
सदियों से मुहब्बत का भी है ये क्यूं सिलसिला और रिवाज़ ना पूछो

प्यार एक प्यास है, प्यार एक अहसास है, रूह से महसूस करो,
होता है बयां वो खामोश निगाहों में और आहोंं में, अल्फाज़ ना पूछो

किया था जो तुम से वादा, निभाया कान्हा ने कायम ओ राधा,
मनमोहन ने गोपियों से भी क्यों रचाया रास वो अंदाज़ ना पूछो

ईमान था बुलंद मेरा “कमल” तभी तो रब की रहमत मिली है,
ईबादत में हर दुआ कुबूल होती है, कैसे किया नियाज़ ना पूछो

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महसूस

सूना रहा हूं तुम्हें दिल की जुबां, दो पल ठहर जाओ,
बस गए मनमंदिर में नज़रें मिलाते ही, अब उम्रभर बसर आओ

आओ बैठो पास मेरे, भर लो बांहों में, महसूस करो आहों में,
ना जाओ प्यासा छोड़ भला, जिस्म से रूह तक पसर जाओ

करने ने दो ख्वाहिशों को ही ख्वाहिशों से गुफ्तगू महफ़िल में,
इशारों से नहीं अब तो होठों से जाम के संग नशा हो कर असर जाओ

मुद्दतें हो गई हैं, उम्मीदें खो गईं हैं, आँखें अरसों से रो रही है,
छू कर जज़्बातों को सूनसान फलक पर आश बन झलक जाओ

तन भी प्यासा, मन भी प्यासा,
बेचैन जिया है पिया बिन उदासा,
मुहब्बत के सहरे में ईश्क की बरसात बरसा के छलक जाओ

© कमल की कलम से

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सलाम

किसी शायर के ख़्वाब से लोगों की रुह तक असर करते हैं,
भूल नहीं सकते वो अल्फाज़ जो ज़िगर में बसर करते हैं

दिखा जाते है वही चहेरे अपने सपने में उन की झलक जरूर,
जो दिन में अक्सर हमारे दिलोदिमाग में सफ़र करते है,

अमर नहीं हों सकता जहां में हर कोई, होना ही है ख़ाक सभी को,
सिर्फ़ कारनामे ही इंसान को तारीख़ की तवारीख में अजर करते है

याद रखना हर नेकी का बदला नहीं देती दुनिया नेकी से कभी,
काट दिए जाते हैं क्योंकि आशरा देने का काम ये शजर करते है!

आते हैं दुआ सलाम के लिए तेरी चौखट पे तेरे अच्छे दिन देख के “कमल”,
लाचार बेसहारों जरूरतमंद के दर पे ये लोग कहां नज़र करते हैं ?

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