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शज़र

ना कोई ठिकाना, ना कोई दर या कायमी घर चाहता हुँ मुसाफिर हुँ जन्नत का,जमीं पे तो बस सफ़र चाहता हुँ तमन्ना नहीं कि हर ख्वाहिश पूरी करने वाला दरख्त मिल जाए कडी धूप में दे दे हर राही को … Continue reading

Posted in "प्रेम का प्याला", हिन्दी | Leave a comment