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Category Archives: हिन्दी
हिन्दी के बारे में विभिन्न महापुरुषों के वचन
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मातृ-भाषा के प्रति – – भारतेंदु हरिश्चंद्र
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।
राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। – अवनींद्रकुमार विद्यालंकार।
हिंदी का काम देश का काम है, समूचे राष्ट्रनिर्माण का प्रश्न है। – बाबूराम सक्सेना।
समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। – (जस्टिस) कृष्णस्वामी अय्यर।
हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है। – शंकरराव कप्पीकेरी।
अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने जिस देशभाषा का स्वागत किया वह ब्रजभाषा थी, न कि उर्दू। -रामचंद्र शुक्ल।
राष्ट्रभाषा हिंदी का किसी क्षेत्रीय भाषा से कोई संघर्ष नहीं है। – अनंत गोपाल शेवड़े।
दक्षिण की हिंदी विरोधी नीति वास्तव में दक्षिण की नहीं, बल्कि कुछ अंग्रेजी भक्तों की नीति है। – के.सी. सारंगमठ।
हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है। – वी. कृष्णस्वामी अय्यर।
राष्ट्रीय एकता की कड़ी हिंदी ही जोड़ सकती है। – बालकृष्ण शर्मा नवीन।
विदेशी भाषा का किसी स्वतंत्र राष्ट्र के राजकाज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है। – वाल्टर चेनिंग।
हिंदी को तुरंत शिक्षा का माध्यम बनाइये। – बेरिस कल्यएव।
अंग्रेजी सर पर ढोना डूब मरने के बराबर है। – सम्पूर्णानंद।
एखन जतोगुलि भाषा भारते प्रचलित आछे ताहार मध्ये भाषा सर्वत्रइ प्रचलित। – केशवचंद्र सेन।
देश को एक सूत्र में बाँधे रखने के लिए एक भाषा की आवश्यकता है। – सेठ गोविंददास।
इस विशाल प्रदेश के हर भाग में शिक्षित-अशिक्षित, नागरिक और ग्रामीण सभी हिंदी को समझते हैं। – राहुल सांकृत्यायन।
समस्त आर्यावर्त या ठेठ हिंदुस्तान की राष्ट्र तथा शिष्ट भाषा हिंदी या हिंदुस्तानी है। -सर जार्ज ग्रियर्सन।
मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। – चंद्रबली पांडेय।
भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। – नलिनविलोचन शर्मा।
जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। – (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। – शिवनंदन सहाय।
प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। – (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। – भवानीदयाल संन्यासी।
यह कैसे संभव हो सकता है कि अंग्रेजी भाषा समस्त भारत की मातृभाषा के समान हो जाये? – चंद्रशेखर मिश्र।
साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। – महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। – (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है। – टी. माधवराव।
हिंदी हिंद की, हिंदियों की भाषा है। – र. रा. दिवाकर।
यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। – राजेन्द्र प्रसाद।
उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। – मुहम्मद हुसैन आजाद।
समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। – जनार्दनप्रसाद झा द्विज।
मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। – राहुल सांकृत्यायन।
शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। – शिवप्रसाद सितारेहिंद।
हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। – (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। – पीर मुहम्मद मूनिस।
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहँुचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा। – शिवपूजन सहाय।
चक्कवै दिली के अथक्क अकबर सोऊ, नरहर पालकी को आपने कँधा करै। – बेनी कवि।
यह निर्विवाद है कि हिंदुओं को उर्दू भाषा से कभी द्वेष नहीं रहा। – ब्रजनंदन दास।
देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। – साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। – छविनाथ पांडेय।
देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक लिपि है। – रविशंकर शुक्ल।
हमारी नागरी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है। – राहुल सांकृत्यायन।
नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। – गोपाललाल खत्री।
साहित्य का स्रोत जनता का जीवन है। – गणेशशंकर विद्यार्थी।
अंग्रेजी से भारत की रक्षा नहीं हो सकती। – पं. कृ. पिल्लयार।
उसी दिन मेरा जीवन सफल होगा जिस दिन मैं सारे भारतवासियों के साथ शुद्ध हिंदी में वार्तालाप करूँगा। – शारदाचरण मित्र।
हिंदी के ऊपर आघात पहुँचाना हमारे प्राणधर्म पर आघात पहुँचाना है। – जगन्नाथप्रसाद मिश्र।
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। – देवव्रत शास्त्री।
हिंदी और नागरी का प्रचार तथा विकास कोई भी रोक नहीं सकता। – गोविन्दवल्लभ पंत।
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। – रविशंकर शुक्ल।
किसी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता। – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
हार सरोज हिए है लसै मम ऐसी गुनागरी नागरी होय। – ठाकुर त्रिभुवननाथ सिंह।
भाषा ही से हृदयभाव जाना जाता है। शून्य किंतु प्रत्यक्ष हुआ सा दिखलाता है। – माधव शुक्ल।
संस्कृत मां, हिंदी गृहिणी और अंग्रेजी नौकरानी है। – डॉ. फादर कामिल बुल्के।
भाषा विचार की पोशाक है। – डॉ. जानसन।
रामचरित मानस हिंदी साहित्य का कोहनूर है। – यशोदानंदन अखौरी।
साहित्य के हर पथ पर हमारा कारवाँ तेजी से बढ़ता जा रहा है। – रामवृक्ष बेनीपुरी।
कवि संमेलन हिंदी प्रचार के बहुत उपयोगी साधन हैं। – श्रीनारायण चतुर्वेदी।
हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। – राजेंद्रप्रसाद।
देवनागरी अक्षरों का कलात्मक सौंदर्य नष्ट करना कहाँ की बुद्धिमानी है? – शिवपूजन सहाय।
जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। – देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
कविता कामिनि भाल में हिंदी बिंदी रूप, प्रकट अग्रवन में भई ब्रज के निकट अनूप। – राधाचरण गोस्वामी।
हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। – शारदाचरण मित्र।
हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। – कमलापति त्रिपाठी।
मैं उर्दू को हिंदी की एक शैली मात्र मानता। – मनोरंजन प्रसाद।
हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। – सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
नागरीप्रचारिणी सभा, काशी की हीरकजयंती के पावन अवसर पर उपस्थित न हो सकने का मुझे बड़ा खेद है। – (प्रो.) तान युन् शान।
राष्ट्रभाषा हिंदी हो जाने पर भी हमारे व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन पर विदेशी भाषा का प्रभुत्व अत्यंत गर्हित बात है। – कमलापति त्रिपाठी।
सभ्य संसार के सारे विषय हमारे साहित्य में आ जाने की ओर हमारी सतत् चेष्टा रहनी चाहिए। – श्रीधर पाठक।
भारतवर्ष के लिए हिंदी भाषा ही सर्वसाधरण की भाषा होने के उपयुक्त है। – शारदाचरण मित्र।
हिंदी भाषा और साहित्य ने तो जन्म से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा है। – धीरेन्द्र वर्मा।
जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। – सेठ गोविंददास।
कविता सुखी और उत्तम मनुष्यों के उत्तम और सुखमय क्षणों का उद्गार है। – शेली।
भाषा की समस्या का समाधान सांप्रदायिक दृष्टि से करना गलत है। – लक्ष्मीनारायण सुधांशु।
भारतीय साहित्य और संस्कृति को हिंदी की देन बड़ी महत्त्वपूर्ण है। – सम्पूर्णानन्द।
हिंदी के पुराने साहित्य का पुनरुद्धार प्रत्येक साहित्यिक का पुनीत कर्तव्य है। – पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल।
परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। – हरगोविंद सिंह।
अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं। – अनंतशयनम् आयंगार।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। – मैथिलीशरण गुप्त।
दाहिनी हो पूर्ण करती है अभिलाषा पूज्य हिंदी भाषा हंसवाहिनी का अवतार है। – अज्ञात।
वास्तविक महान् व्यक्ति तीन बातों द्वारा जाना जाता है- योजना में उदारता, उसे पूरा करने में मनुष्यता और सफलता में संयम। – बिस्मार्क।
हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है। – गोपाललाल खत्री।
कविता मानवता की उच्चतम अनुभूति की अभिव्यक्ति है। – हजारी प्रसाद द्विवेदी।
हिंदी ही के द्वारा अखिल भारत का राष्ट्रनैतिक ऐक्य सुदृढ़ हो सकता है। – भूदेव मुखर्जी।
हिंदी का शिक्षण भारत में अनिवार्य ही होगा। – सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
हिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित है। – नन्ददुलारे वाजपेयी।
अकबर की सभा में सूर के जसुदा बार-बार यह भाखै पद पर बड़ा स्मरणीय विचार हुआ था।- राधाचरण गोस्वामी।
देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। – सुधाकर द्विवेदी।
हिंदी साहित्य धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष इस चतु:पुरुषार्थ का साधक अतएव जनोपयोगी। – (डॉ.) भगवानदास।
हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। – मैथिलीशरण गुप्त।
वाणी, सभ्यता और देश की रक्षा करना सच्चा धर्म यज्ञ है। – ठाकुरदत्त शर्मा।
निष्काम कर्म ही सर्वोत्तम कार्य है, जो तृप्ति प्रदाता है और व्यक्ति और समाज की शक्ति बढ़ाता है। – पंडित सुधाकर पांडेय।
अब हिंदी ही माँ भारती हो गई है- वह सबकी आराध्य है, सबकी संपत्ति है। – रविशंकर शुक्ल।
बच्चों को विदेशी लिपि की शिक्षा देना उनको राष्ट्र के सच्चे प्रेम से वंचित करना है। – भवानीदयाल संन्यासी।
यहाँ (दिल्ली) के खुशबयानों ने मताहिद (गिनी चुनी) जबानों से अच्छे अच्छे लफ्ज निकाले और बाजे इबारतों और अल्फाज में तसर्रूफ (परिवर्तन) करके एक नई जवान पैदा की जिसका नाम उर्दू रखा है। – दरियाये लताफत।
भाषा और राष्ट्र में बड़ा घनिष्ट संबंध है। – (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
अगर उर्दूवालों की नीति हिंदी के बहिष्कार की न होती तो आज लिपि के सिवा दोनों में कोई भेद न पाया जाता। – देशरत्न डॉ. राजेंद्रप्रसाद।
हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र और जाति की उन्नति। – रामवृक्ष बेनीपुरी।
बाजारवाली बोली विश्वविद्यालयों में काम नहीं दे सकती। – संपूर्णानंद।
भारतेंदु का साहित्य मातृमंदिर की अर्चना का साहित्य है। – बदरीनाथ शर्मा।
तलवार के बल से न कोई भाषा चलाई जा सकती है न मिटाई। – शिवपूजन सहाय।
अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिये ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता समझता है। – महात्मा गाँधी।
हिंदी को राजभाषा करने के बाद पूरे पंद्रह वर्ष तक अंग्रेजी का प्रयोग करना पीछे कदम हटाना है।- राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन।
भाषा राष्ट्रीय शरीर की आत्मा है। – स्वामी भवानीदयाल संन्यासी।
हिंदी के राष्ट्रभाषा होने से जहाँ हमें हर्षोल्लास है, वहीं हमारा उत्तरदायित्व भी बहुत बढ़ गया है।- मथुरा प्रसाद दीक्षित।
भारतवर्ष में सभी विद्याएँ सम्मिलित परिवार के समान पारस्परिक सद्भाव लेकर रहती आई हैं।- रवींद्रनाथ ठाकुर।
इतिहास को देखते हुए किसी को यह कहने का अधिकारी नहीं कि हिंदी का साहित्य जायसी के पहले का नहीं मिलता। – (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।
संप्रति जितनी भाषाएं भारत में प्रचलित हैं उनमें से हिंदी भाषा प्राय: सर्वत्र व्यवहृत होती है। – केशवचंद्र सेन।
हिंदी ने राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहानसारूढ़ होने पर अपने ऊपर एक गौरवमय एवं गुरुतर उत्तरदायित्व लिया है। – गोविंदबल्लभ पंत।
हिंदी जिस दिन राजभाषा स्वीकृत की गई उसी दिन से सारा राजकाज हिंदी में चल सकता था। – सेठ गोविंददास।
हिंदी भाषी प्रदेश की जनता से वोट लेना और उनकी भाषा तथा साहित्य को गालियाँ देना कुछ नेताओं का दैनिक व्यवसाय है। – (डॉ.) रामविलास शर्मा।
जब एक बार यह निश्चय कर लिया गया कि सन् १९६५ से सब काम हिंदी में होगा, तब उसे अवश्य कार्यान्वित करना चाहिए। – सेठ गोविंददास।
साहित्यसेवा और धर्मसाधना पर्यायवायी है। – (म. म.) सत्यनारायण शर्मा।
जिसका मन चाहे वह हिंदी भाषा से हमारा दूर का संबंध बताये, मगर हम बिहारी तो हिंदी को ही अपनी भाषा, मातृभाषा मानते आए हैं। – शिवनंदन सहाय।
उर्दू का ढाँचा हिंदी है, लेकिन सत्तर पचहत्तर फीसदी उधार के शब्दों से उर्दू दाँ तक तंग आ गए हैं। – राहुल सांकृत्यायन।
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती। भगवान भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती। – मैथिलीशरण गुप्त।
गद्य जीवनसंग्राम की भाषा है। इसमें बहुत कार्य करना है, समय थोड़ा है। – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
अंग्रेजी हमें गूँगा और कूपमंडूक बना रही है। – ब्रजभूषण पांडेय।
लाखों की संख्या में छात्रों की उस पलटन से क्या लाभ जिनमें अंग्रेजी में एक प्रार्थनापत्र लिखने की भी क्षमता नहीं है। – कंक।
मैं राष्ट्र का प्रेम, राष्ट्र के भिन्न-भिन्न लोगों का प्रेम और राष्ट्रभाषा का प्रेम, इसमें कुछ भी फर्क नहीं देखता। – र. रा. दिवाकर।
देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्वयं सिद्ध है। – महावीर प्रसाद द्विवेदी।
हिमालय से सतपुड़ा और अंबाला से पूर्णिया तक फैला हुआ प्रदेश हिंदी का प्रकृत प्रांत है। – राहुल सांकृत्यायन।
किसी राष्ट्र की राजभाषा वही भाषा हो सकती है जिसे उसके अधिकाधिक निवासी समझ सके। – (आचार्य) चतुरसेन शास्त्री।
साहित्य के इतिहास में काल विभाजन के लिए तत्कालीन प्रवृत्तियों को ही मानना न्यायसंगत है। – अंबाप्रसाद सुमन।
हिंदी भाषा हमारे लिये किसने बनाया? प्रकृति ने। हमारे लिये हिंदी प्रकृतिसिद्ध है। – पं. गिरिधर शर्मा।
हिंदी भाषा उस समुद्र जलराशि की तरह है जिसमें अनेक नदियाँ मिली हों। – वासुदेवशरण अग्रवाल।
भाषा देश की एकता का प्रधान साधन है। – (आचार्य) चतुरसेन शास्त्री।
क्रांतदर्शी होने के कारण ऋषि दयानंद ने देशोन्नति के लिये हिंदी भाषा को अपनाया था। – विष्णुदेव पौद्दार।
सच्चा राष्ट्रीय साहित्य राष्ट्रभाषा से उत्पन्न होता है। – वाल्टर चेनिंग।
हिंदी के पौधे को हिंदू मुसलमान दोनों ने सींचकर बड़ा किया है। – जहूरबख्श।
किसी लफ्ज के उर्दू न होने से मुराद है कि उर्दू में हुरूफ की कमी बेशी से वह खराद पर नहीं चढ़ा। – सैयद इंशा अल्ला खाँ।
अंग्रेजी का पद चिरस्थायी करना देश के लिये लज्जा की बात है – संपूर्णानंद।
हिंदी राष्ट्रभाषा है, इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को, प्रत्येक भारतवासी को इसे सीखना चाहिए। – रविशंकर शुक्ल।
हिंदी प्रांतीय भाषा नहीं बल्कि वह अंत:प्रांतीय राष्ट्रीय भाषा है। – छविनाथ पांडेय।
साहित्य को उच्च अवस्था पर ले जाना ही हमारा परम कर्तव्य है। – पार्वती देवी।
विश्व की कोई भी लिपि अपने वर्तमान रूप में नागरी लिपि के समान नहीं। – चंद्रबली पांडेय।
भाषा की एकता जाति की एकता को कायम रखती है। – राहुल सांकृत्यायन।
जिस राष्ट्र की जो भाषा है उसे हटाकर दूसरे देश की भाषा को सारी जनता पर नहीं थोपा जा सकता – वासुदेवशरण अग्रवाल।
पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय सहस्रगुना अच्छी है। – अज्ञात।
समाज के अभाव में आदमी की आदमियत की कल्पना नहीं की जा सकती। – पं. सुधाकर पांडेय।
तुलसी, कबीर, नानक ने जो लिखा है, उसे मैं पढ़ता हूँ तो कोई मुश्किल नहीं आती। – मौलाना मुहम्मद अली।
भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। – रामवृक्ष बेनीपुरी।
हिंदी भाषी ही एक ऐसी भाषा है जो सभी प्रांतों की भाषा हो सकती है। – पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
जब हम हिंदी की चर्चा करते हैं तो वह हिंदी संस्कृति का एक प्रतीक होती है। – शांतानंद नाथ।
भारतीय धर्म की है घोषणा घमंड भरी, हिंदी नहीं जाने उसे हिंदू नहीं जानिए। – नाथूराम शंकर शर्मा।
राजनीति के चिंतापूर्ण आवेग में साहित्य की प्रेरणा शिथिल नहीं होनी चाहिए। – राजकुमार वर्मा।
हिंदी में जो गुण है उनमें से एक यह है कि हिंदी मर्दानी जबान है। – सुनीति कुमार चाटुर्ज्या।
स्पर्धा ही जीवन है, उसमें पीछे रहना जीवन की प्रगति खोना है। – निराला।
कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है। – सुमित्रानंदन पंत।
बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। – गोविंद शास्त्री दुगवेकर।
उर्दू लिपि की अनुपयोगिता, भ्रामकता और कठोरता प्रमाणित हो चुकी है। – रामरणविजय सिंह।
राष्ट्रभाषा राष्ट्रीयता का मुख्य अंश है। – श्रीमती सौ. चि. रमणम्मा देव।
बानी हिंदी भाषन की महरानी, चंद्र, सूर, तुलसी से जामें भए सुकवि लासानी। – पं. जगन्नाथ चतुर्वेदी।
जय जय राष्ट्रभाषा जननि। जयति जय जय गुण उजागर राष्ट्रमंगलकरनि। – देवी प्रसाद गुप्त।
हिंदी हमारी हिंदू संस्कृति की वाणी ही तो है। – शांतानंद नाथ।
आज का लेखक विचारों और भावों के इतिहास की वह कड़ी है जिसके पीछे शताब्दियों की कड़ियाँ जुड़ी है। – माखनलाल चतुर्वेदी।
विज्ञान के बहुत से अंगों का मूल हमारे पुरातन साहित्य में निहित है। – सूर्यनारायण व्यास।
कोई कौम अपनी जबान के बगैर अच्छी तालीम नहीं हासिल कर सकती। – सैयद अमीर अली मीर।
हिंदी और उर्दू में झगड़ने की बात ही नहीं है। – ब्रजनंदन सहाय।
कविता हृदय की मुक्त दशा का शाब्दिक विधान है। – रामचंद्र शुक्ल।
हमारी राष्ट्रभाषा का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीयता का दृढ़ निर्माण है। – चंद्रबली पांडेय।
जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जाग्रत नहीं होती वह शिक्षा किसी काम की नहीं। – माधवराव सप्रे।
कालोपयोगी कार्य न कर सकने पर महापुरुष बन सकना संभव नहीं है। – सू. च. धर।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। – विनोबा भावे।
आज का आविष्कार कल का साहित्य है। – माखनलाल चतुर्वेदी।
भाषा के सवाल में मजहब को दखल देने का कोई हक नहीं। – राहुल सांकृत्यायन।
जब तक संघ शक्ति उत्पन्न न होगी तब तक प्रार्थना में कुछ जान नहीं हो सकती। – माधव राव सप्रे।
हिंदी विश्व की महान भाषा है। – राहुल सांकृत्यायन।
राष्ट्रीय एकता के लिये एक भाषा से कहीं बढ़कर आवश्यक एक लिपि का प्रचार होना है। – ब्रजनंदन सहाय।
जो ज्ञान तुमने संपादित किया है उसे वितरित करते रहो ओर सबको ज्ञानवान बनाकर छोड़ो। – संत रामदास।
पाँच मत उधर और पाँच मत इधर रहने से श्रेष्ठता नहीं आती। – माखनलाल चतुर्वेदी।
मैं मानती हूँ कि हिंदी प्रचार से राष्ट्र का ऐक्य जितना बढ़ सकता है वैसा बहुत कम चीजों से बढ़ सकेगा। – लीलावती मुंशी।
हिंदी उर्दू के नाम को दूर कीजिए एक भाषा बनाइए। सबको इसके लिए तैयार कीजिए। – देवी प्रसाद गुप्त।
साहित्यकार विश्वकर्मा की अपेक्षा कहीं अधिक सामर्थ्यशाली है। – पं. वागीश्वर जी।
हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य को सर्वांगसुंदर बनाना हमारा कर्त्तव्य है। – डॉ. राजेंद्रप्रसाद।
हिंदी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता। – सूर्य कांत त्रिपाठी निराला।
भाषा के उत्थान में एक भाषा का होना आवश्यक है। इसलिये हिंदी सबकी साझा भाषा है। – पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
यदि स्वदेशाभिमान सीखना है तो मछली से जो स्वदेश (पानी) के लिये तड़प तड़प कर जान दे देती है। – सुभाषचंद्र बसु।
पिछली शताब्दियों में संसार में जो राजनीतिक क्रांतियाँ हुई, प्राय: उनका सूत्रसंचालन उस देश के साहित्यकारों ने किया है। – पं. वागीश्वर जी।
विजयी राष्ट्रवाद अपने आपको दूसरे देशों का शोषण कर जीवित रखना चाहता है। – बी. सी. जोशी।
हिंदी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है। – माखनलाल चतुर्वेदी।
यदि लिपि का बखेड़ा हट जाये तो हिंदी उर्दू में कोई विवाद ही न रहे। – बृजनंदन सहाय।
भारत सरस्वती का मुख संस्कृत है। – म. म. रामावतार शर्मा।
साधारण कथा कहानियों तथा बालोपयोगी कविता में संस्कृत के सामासिक शब्द लाने से उनके मूल उद्देश्य की सफलता में बाधा पड़ती है। – रघुवरप्रसाद द्विवेदी।
यदि आप मुझे कुछ देना चाहती हों तो इस पाठशाला की शिक्षा का माध्यम हमारी मातृभाषा कर दें। – एक फ्रांसीसी बालिका।
निर्मल चरित्र ही मनुष्य का शृंगार है। – पंडित सुधाकर पांडेय।
हिंदुस्तान को छोड़कर दूसरे मध्य देशों में ऐसा कोई अन्य देश नहीं है, जहाँ कोई राष्ट्रभाषा नहीं हो। – सैयद अमीर अली मीर।
इतिहास में जो सत्य है वही अच्छा है और जो असत्य है वही बुरा है। – जयचंद्र विद्यालंकार।
सरलता, बोधगम्यता और शैली की दृष्टि से विश्व की भाषाओं में हिंदी महानतम स्थान रखती है। – अमरनाथ झा।
हिंदी सरल भाषा है। इसे अनायास सीखकर लोग अपना काम निकाल लेते हैं। – जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी।
एक भाषा का प्रचार रहने पर केवल इसी के सहारे, यदि लिपिगत भिन्नता न हो तो, अन्यान्य राष्ट्र गठन के उपकरण आ जाने संभव हो सकते हैं। – अयोध्याप्रसाद वर्मा।
किसी भाषा की उन्नति का पता उसमें प्रकाशित हुई पुस्तकों की संख्या तथा उनके विषय के महत्व से जाना जा सकता है। – गंगाप्रसाद अग्निहोत्री।
जीवन के छोटे से छोटे क्षेत्र में हिंदी अपना दायित्व निभाने में समर्थ है। – पुरुषोत्तमदास टंडन।
बिहार में ऐसा एक भी गाँव नहीं है जहाँ केवल रामायण पढ़ने के लिये दस-बीस मनुष्यों ने हिंदी न सीखी हो। – सकलनारायण पांडेय।
संस्कृत की इशाअत (प्रचार) का एक बड़ा फायदा यह होगा कि हमारी मुल्की जबान (देशभाषा) वसीअ (व्यापक) हो जायगी। – मौलवी महमूद अली।
संसार में देश के नाम से भाषा को नाम दिया जाता है और वही भाषा वहाँ की राष्ट्रभाषा कहलाती है। – ताराचंद्र दूबे।
सर्वसाधारण पर जितना पद्य का प्रभाव पड़ता है उतना गद्य का नहीं। – राजा कृत्यानंद सिंह।
जो गुण साहित्य की जीवनी शक्ति के प्रधान सहायक होते हैं उनमें लेखकों की विचारशीलता प्रधान है। – नरोत्तम व्यास।
भाषा और भाव का परिवर्तन समाज की अवस्था और आचार विचार से अधिक संबंध रखता है। – बदरीनाथ भट्ट।
साहित्य पढ़ने से मुख्य दो बातें तो अवश्य प्राप्त होती हैं, अर्थात् मन की शक्तियों को विकास और ज्ञान पाने की लालसा। – बिहारीलाल चौबे।
देवनागरी और बंगला लिपियों को साथ मिलाकर देखना है। – मन्नन द्विवेदी।
है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी। – मैथिलीशरण गुप्त।
संस्कृत की विरासत हिंदी को तो जन्म से ही मिली है। – राहुल सांकृत्यायन।
कैसे निज सोये भाग को कोई सकता है जगा, जो निज भाषा-अनुराग का अंकुर नहिं उर में उगा। – हरिऔध।
हिंदी में हम लिखें पढ़ें, हिंदी ही बोलें। – पं. जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी।
जिस वस्तु की उपज अधिक होती है उसमें से बहुत सा भाग फेंक भी दिया जाता है। ग्रंथों के लिये भी ऐसा ही हिसाब है। – गिरजाकुमार घोष।
यह जो है कुरबान खुदा का, हिंदी करे बयान सदा का। – अज्ञात।
क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। – डॉ. श्यामसुंदर दास।
बँगला वर्णमाला की जाँच से मालूम होता है कि देवनागरी लिपि से निकली है और इसी का सीधा सादा रूप है। – रमेशचंद्र दत्त।
वास्तव में वेश, भाषा आदि के बदलने का परिणाम यह होता है कि आत्मगौरव नष्ट हो जाता है, जिससे देश का जातित्व गुण मिट जाता है। – सैयद अमीर अली मीर।
दूसरों की बोली की नकल करना भाषा के बदलने का एक कारण है। – गिरींद्रमोहन मित्र।
समालोचना ही साहित्य मार्ग की सुंदर सड़क है। – म. म. गिरधर शर्मा चतुर्वेदी।
नागरी वर्णमाला के समान सर्वांगपूर्ण और वैज्ञानिक कोई दूसरी वर्णमाला नहीं है। – बाबू राव विष्णु पराड़कर।
अन्य देश की भाषा ने हमारे देश के आचार व्यवहार पर कैसा बुरा प्रभाव डाला है। – अनादिधन वंद्योपाध्याय।
व्याकरण चाहे जितना विशाल बने परंतु भाषा का पूरा-पूरा समाधान उसमें नहीं हो सकता। – अनंतराम त्रिपाठी।
स्वदेशप्रेम, स्वधर्मभक्ति और स्वावलंबन आदि ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक मनुष्य में होने चाहिए। – रामजी लाल शर्मा।
गुणवान खानखाना सदृश प्रेमी हो गए रसखान और रसलीन से हिंदी प्रेमी हो गए। – राय देवीप्रसाद।
वैज्ञानिक विचारों के पारिभाषिक शब्दों के लिये, किसी विषय के उच्च भावों के लिये, संस्कृत साहित्य की सहायता लेना कोई शर्म की बात नहीं है। – गणपति जानकीराम दूबे।
हिंदुस्तान के लिये देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहाँ हो ही नहीं सकता। – महात्मा गाँधी।
अभिमान सौंदर्य का कटाक्ष है। – अज्ञात।
कवि का हृदय कोमल होता है। – गिरिजाकुमार घोष।
श्री रामायण और महाभारत भारत के ही नहीं वरन् पृथ्वी भर के जैसे अमूल्य महाकाव्य हैं। – शैलजाकुमार घोष।
हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती। – चंद्रबली पाण्डेय।
भाषा की उन्नति का पता मुद्रणालयों से भी लग सकता है। – गंगाप्रसाद अग्निहोत्री।
पुस्तक की उपयोगिता को चिरस्थायी रखने के लिए उसे भावी संतानों के लिये पथप्रदर्शक बनाने के लिये यह आवश्यक है कि पुस्तक के असली लेखक का नाम उस पर रहे। – सत्यदेव परिव्राजक।
खड़ी बोली का एक रूपांतर उर्दू है। – बदरीनाथ भट्ट।
भारतवर्ष मनुष्य जाति का गुरु है। – विनयकुमार सरकार।
हमारी भारत भारती की शैशवावस्था का रूप ब्राह्मी या देववाणी है, उसकी किशोरावस्था वैदिक भाषा और संस्कृति उसकी यौवनावस्था की संुदर मनोहर छटा है। – बदरीनारायण चौधरी प्रेमधन।
हृतंत्री की तान पर नीरव गान गाने से न किसी के प्रति किसी की अनुकम्पा जगती है और न कोई किसी का उपकार करने पर ही उतारू होता है। – रामचंद्र शुक्ल।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। – भारतेंदू हरिश्चंद्र।
आर्यों की सबसे प्राचीन भाषा हिंदी ही है और इसमें तद्भव शब्द सभी भाषाओं से अधिक है। – वीम्स साहब।
क्यों न वह फिर रास्ते पर ठीक चलने से डिगे , हैं बहुत से रोग जिसके एक ही दिल में लगे। – हरिऔध।
जब तक साहित्य की उन्नति न होगी, तब तक संगीत की उन्नति नहीं हो सकती। – विष्णु दिगंबर।
जो पढ़ा-लिखा नहीं है – जो शिक्षित नहीं है वह किसी भी काम को भली-भाँति नहीं कर सकता। – गोपाललाल खत्री।
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। – महात्मा गाँधी।
जिस प्रकार बंगाल भाषा के द्वारा बंगाल में एकता का पौधा प्रफुल्लित हुआ है उसी प्रकार हिंदी भाषा के साधारण भाषा होने से समस्त भारतवासियों में एकता तरु की कलियाँ अवश्य ही खिलेंगी। – शारदाचरण मित्र।
इतिहास स्वदेशाभिमान सिखाने का साधन है। – महात्मा गांधी।
जो दिखा सके वही दर्शन शास्त्र है नहीं तो वह अंधशास्त्र है। – डॉ. भगवानादास।
विदेशी लोगों का अनुकरण न किया जाय। – भीमसेन शर्मा।
भारतवर्ष के लिये देवनागरी साधारण लिपि हो सकती है और हिंदी भाषा ही सर्वसाधारण की भाषा होने के उपयुक्त है। – शारदाचरण मित्र।
अकबर का शांत राज्य हमारी भाषा का मानो स्वर्णमय युग था। – छोटूलाल मिश्र।
नाटक का जितना ऊँचा दरजा है, उपन्यास उससे सूत भर भी नीचे नहीं है। – गोपालदास गहमरी।
किसी भी बृहत् कोश में साहित्य की सब शाखाओं के शब्द होने चाहिए। – महावीर प्रसाद द्विवेदी।
जो कुछ भी नजर आता है वह जमीन और आसमान की गोद में उतना सुंदर नहीं जितना नजर में है। – निराला।
देव, जगदेव, देश जाति की सुखद प्यारी, जग में गुणगरी सुनागरी हमारी है। – चकोर।
शिक्षा का मुख्य तात्पर्य मानसिक उन्नति है। – पं. रामनारायण मिश्र।
भारत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिंदी भाषा कुछ न कुछ सर्वत्र समझी जाती है। – पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
जापानियों ने जिस ढंग से विदेशी भाषाएँ सीखकर अपनी मातृभाषा को उन्नति के शिखर पर पहुँचाया है उसी प्रकार हमें भी मातृभाषा का भक्त होना चाहिए। – श्यामसुंदर दास।
विचारों का परिपक्व होना भी उसी समय संभव होता है, जब शिक्षा का माध्यम प्रकृतिसिद्ध मातृभाषा हो। – पं. गिरधर शर्मा।
विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। – महात्मा गांधी।
यह महात्मा गाँधी का प्रताप है, जिनकी मातृभाषा गुजराती है पर हिंदी को राष्ट्रभाषा जानकर जो उसे अपने प्रेम से सींच रहे हैं। – लक्ष्मण नारायण गर्दे।
हिंदी भाषा के लिये मेरा प्रेम सब हिंदी प्रेमी जानते हैं। – महात्मा गांधी।
सब विषयों के गुण-दोष सबकी दृष्टि में झटपट तो नहीं आ जाते। – म. म. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी।
किसी देश में ग्रंथ बनने तक वैदेशिक भाषा में शिक्षा नहीं होती थी। देश भाषाओं में शिक्षा होने के कारण स्वयं ग्रंथ बनते गए हैं। – साहित्याचार्य रामावतार शर्मा।
जो भाषा सामयिक दूसरी भाषाओं से सहायता नहीं लेती वह बहुत काल तक जीवित नहीं रह सकती। – पांडेय रामवतार शर्मा।
नागरीप्रचारिणी सभा के गुण भारी जिन तेरों देवनागरी प्रचार करिदीनो है। – नाथूराम शंकर शर्मा।
जितना और जैसा ज्ञान विद्यार्थियों को उनकी जन्मभाषा में शिक्षा देने से अल्पकाल में हो सकता है; उतना और वैसा पराई भाषा में सुदीर्घ काल में भी होना संभव नहीं है। – घनश्याम सिंह।
विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई है। – माधवराव सप्रे।
मैं महाराष्ट्री हूँ, परंतु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है। – माधवराव सप्रे।
मनुष्य सदा अपनी मातृभाषा में ही विचार करता है। इसलिये अपनी भाषा सीखने में जो सुगमता होती है दूसरी भाषा में हमको वह सुगमता नहीं हो सकती। – डॉ. मुकुन्दस्वरूप वर्मा।
हिंदी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। – महात्मा गांधी।
राष्ट्रीयता का भाषा और साहित्य के साथ बहुत ही घनिष्ट और गहरा संबंध है। – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
यदि हम अंग्रेजी दूसरी भाषा के समान पढ़ें तो हमारे ज्ञान की अधिक वृद्धि हो सकती है। – जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी।
स्वतंत्रता की कोख से ही आलोचना का जन्म है। – मोहनलाल महतो वियोगी।
युग के साथ न चल सकने पर महात्माओं का महत्त्व भी म्लान हो उठता है। – सु. च. धर।
हिंदी पर ना मारो ताना, सभा बतावे हिंदी माना। – नूर मुहम्मद।
आप जिस तरह बोलते हैं, बातचीत करते हैं, उसी तरह लिखा भी कीजिए। भाषा बनावटी न होनी चाहिए। – महावीर प्रसाद द्विवेदी।
हिंदी भाषा की उन्नति के बिना हमारी उन्नति असम्भव है। – गिरधर शर्मा।
भाषा ही राष्ट्र का जीवन है। – पुरुषोत्तमदास टंडन।
देह प्राण का ज्यों घनिष्ट संबंध अधिकतर। है तिससे भी अधिक देशभाषा का गुरुतर। – माधव शुक्ल।
जब हम अपना जीवन जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दें तब हम हिंदी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। – गोविन्ददास।
नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। – गोपाललाल खत्री।
देश तथा जाति का उपकार उसके बालक तभी कर सकते हैं, जब उन्हें उनकी भाषा द्वारा शिक्षा मिली हो। – पं. गिरधर शर्मा।
राष्ट्रभाषा की साधना कोरी भावुकता नहीं है। – जगन्नाथप्रसाद मिश्र।
साहित्य को स्वैर संचा करने की इजाजत न किसी युग में रही होगी न वर्तमान युग में मिल सकती है। – माखनलाल चतुर्वेदी।
अंग्रेजी सीखकर जिन्होंने विशिष्टता प्राप्त की है, सर्वसाधारण के साथ उनके मत का मेल नहीं होता। हमारे देश में सबसे बढ़कर जातिभेद वही है, श्रेणियों में परस्पर अस्पृश्यता इसी का नाम है। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
साहित्य की सेवा भगवान का कार्य है, आप काम में लग जाइए आपको भगवान की सहायता प्राप्त होगी और आपके मनोरथ परिपूर्ण होंगे। – चंद्रशेखर मिश्र।
सब से जीवित रचना वह है जिसे पढ़ने से प्रतीत हो कि लेखक ने अंतर से सब कुछ फूल सा प्रस्फुटित किया है। – शरच्चंद।
सिक्ख गुरुओं ने आपातकाल में हिंदी की रक्षा के लिये ही गुरुमुखी रची थी। – संतराम शर्मा।
हिंदी जैसी सरल भाषा दूसरी नहीं है। – मौलाना हसरत मोहानी।
ऐसे आदमी आज भी हमारे देश में मौजूद हैं जो समझते हैं कि शिक्षा को मातृभाषा के आसन पर बिठा देने से उसकी कीमत ही घट जायेगी। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
लोकोपकारी विषयों को आदर देने वाली नवीन प्रथा का स्थिर हो जाना ही एक बहुत बड़ा उत्साहप्रद कार्य है। – मिश्रबंधु।
हमारे साहित्य को कामधेनु बनाना है। – चंद्रबली पांडेय।
भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिंदी प्रचार द्वारा एकता स्थापित करने वाले सच्चे भारत बंधु हैं। – अरविंद।
हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है। – महात्मा गांधी।
मेरा आग्रहपूर्वक कथन है कि अपनी सारी मानसिक शक्ति हिन्दी के अध्ययन में लगावें। – विनोबा भावे।
साहित्यिक इस बात को कभी न भूले कि एक ख्याल ही क्रिया का स्वामी है, उसे बढ़ाने, घटाने या ठुकरा देनेवाला। – माखनलाल चतुर्वेदी।
एशिया के कितने ही राष्ट्र आज यूरोपीय राष्ट्रों के चंगुल से छूट गए हैं पर उनकी आर्थिक दासता आज भी टिकी हुई है। – वी. सी. जोशी।
हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। – स्वामी दयानंद।
इस पथ का उद्देश्य नहीं है, श्रांत भवन में टिक रहना। – जयशंकर प्रसाद।
विद्या अच्छे दिनों में आभूषण है, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित सामग्री है। – अरस्तु।
अधिक अनुभव, अधिक विपत्ति सहना, और अधिक अध्ययन, ये ही विद्वता के तीन स्तंभ हैं। – डिजरायली।
जैसे-जैसे हमारे देश में राष्ट्रीयता का भाव बढ़ता जायेगा वैसे ही वैसे हिंदी की राष्ट्रीय सत्ता भी बढ़ेगी। – श्रीमती लोकसुन्दरी रामन् ।
शब्दे मारिया मर गया शब्दे छोड़ा राज। जे नर शब्द पिछानिया ताका सरिया काज। – कबीर।
यदि स्वदेशाभिमान सीखना है तो मछली से जो स्वदेश (पानी) के लिये तड़प-तड़पकर जान दे देती है। – सुभाषचन्द्र बसु।
प्रसिद्धि का भीतरी अर्थ यशविस्तार नहीं, विषय पर अच्छी सिद्धि पाना है। – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
सरस्वती से श्रेष्ठ कोई वैद्य नहीं और उसकी साधना से बढ़कर कोई दवा नहीं है। – एक जपानी सूक्ति।
संस्कृत प्राकृत से संबंध विच्छेद कदापि श्रेयस्कर नहीं। – यशेदानंदन अखौरी।
राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिये आवश्यक है। – महात्मा गांधी।
शिक्षा का प्रचार और विद्या की उन्नति इसलिये अपेक्षित है कि जिससे हमारे -स्वत्व का रक्षण हो। – माधवराव सप्रे।
विधान भी स्याही का एक बिन्दु गिराकर भाग्यलिपि पर कालिमा चढ़ा देता है। – जयशंकर प्रसाद।
जीवित भाषा बहती नदी है जिसकी धारा नित्य एक ही मार्ग से प्रवाहित नहीं होती। – बाबूराव विष्णु पराड़कर।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। – मैथिलीशरण गुप्त।
हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। – मैथिलीशरण गुप्त।
पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय सहस्त्र गुना अच्छी है। – अज्ञात।
कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल हैं। उसकी भावराशि अथाह और अचिंत्य है। – मैक्सिम गोर्की।
कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखंड सत्य है। – महादेवी वर्मा।
क्षण प्रति-क्षण जो नवीन दिखाई पड़े वही रमणीयता का उत्कृष्ट रूप है। – माघ।
प्रसन्नता न हमारे अंदर है न बाहर वरन् वह हमारा ईश्वर के साथ ऐक्य है। – पास्कल।
हिन्दी भाषा और साहित्य ने तो जन्म से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा है। – धीरेन्द्र वर्मा।
साहित्यकार एक दीपक के समान है जो जलकर केवल दूसरों को ही प्रकाश देता है। – अज्ञात।
बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। – गोविन्द शास्त्री दुगवेकर।
विधाता कर्मानुसार संसार का निर्माण करता है किन्तु साहित्यकार इस प्रकार के बंधनों से ऊपर है। – बागीश्वरजी।
श्रद्धा महत्व की आनंदपूर्ण स्वीकृति के साथ-साथ पूज्य बुद्धि का संचार है। – रामचंद्र शुक्ल।
कविता सुखी और उत्तम मनुष्यों के उत्तम और सुखमय क्षणों का उद्गार है। – शेली।
भय ही पराधीनता है, निर्भयता ही स्वराज्य है। – प्रेमचंद।
वास्तविक महान् व्यक्ति तीन बातों द्वारा जाना जाता है-योजना में उदारता, उसे पूरी करने में मनुष्यता और सफलता में संयम। – बिस्मार्क।
रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्द का नाम काव्य है। – पंडितराज जगन्नाथ।
प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है। – रामचंद्र शुक्ल।
अंग्रेजी को भारतीय भाषा बनाने का यह अभिप्राय है कि हम अपने भारतीय अस्तित्व को बिल्कुल मिटा दें। – पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
अंग्रेजी का मुखापेक्षी रहना भारतीयों को किसी प्रकार से शोभा नहीं देता है। – भास्कर गोविन्द धाणेकर।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी शिक्षा विदेशी भाषा में होती है और मातृभाषा में नहीं होती। – माधवराव सप्रे।
भाषा ही राष्ट्र का जीवन है। – पुरुषोत्तमदास टंडन।
कविता मानवता की उच्चतम अनुभूति की अभिव्यक्ति है। – हजारी प्रसाद द्विवेदी।
हिंदी स्वयं अपनी ताकत से बढ़ेगी। – पं. नेहरू।
भाषा विचार की पोशाक है। – डॉ. जोनसन।
हमारी देवनागरी इस देश की ही नहीं समस्त संसार की लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। – सेठ गोविन्ददास।
अंग्रेजी के माया मोह से हमारा आत्मविश्वास ही नष्ट नहीं हुआ है, बल्कि हमारा राष्ट्रीय स्वाभिमान भी पददलित हुआ है। – लक्ष्मीनारायण सिंह सुधांशु।
आइए हम आप एकमत हो कोई ऐसा उपाय करें जिससे राष्ट्रभाषा का प्रचार घर-घर हो जाये और राष्ट्र का कोई भी कोना अछूता न रहे। – चन्द्रबली पांडेय।
जैसे जन्मभूमि जगदम्बा का स्वरूप है वैसे ही मातृभाषा भी जगदम्बा का स्वरूप है। – गोविन्द शास्त्री दुगवेकर।
हिंदी और उर्दू की जड़ एक है, रूपरेखा एक है और दोनों को अगर हम चाहें तो एक बना सकते हैं। – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
हिंदी आज साहित्य के विचार से रूढ़ियों से बहुत आगे है। विश्वसाहित्य में ही जानेवाली रचनाएँ उसमें हैं। – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
भारत की रक्षा तभी हो सकती है जब इसके साहित्य, इसकी सभ्यता तथा इसके आदर्शों की रक्षा हो। – पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार।
हिंदी संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है। – ग्रियर्सन।
मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। – महात्मा गांधी।
मेरे लिये हिन्दी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। – राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन।
संस्कृत को छोड़कर आज भी किसी भी भारतीय भाषा का वाङ्मय विस्तार या मौलिकता में हिन्दी के आगे नहीं जाता। – डॉ. सम्पूर्णानन्द।
उर्दू और हिंदी दोनों को मिला दो। अलग-अलग नाम नहीं होना चाहिए। – मौलाना मुहम्मद अली।
राष्ट्रभाषा के विषय में यह बात ध्यान में रखनी होगी कि यह राष्ट्र के सब प्रान्तों की समान और स्वाभाविक राष्ट्रभाषा है। – लक्ष्मण नारायण गर्दे।
प्रसन्नता न हमारे अंदर है न बाहर वरन् वह हमारा ईश्वर के साथ ऐक्य है। – पास्कल।
विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य। – मन्नन द्विवेदी।
जातीय भाव हमारी अपनी भाषा की ओर झुकता है। – शारदाचरण मित्र।
हिंदी अपनी भूमि की अधिष्ठात्री है। – राहुल सांकृत्यायन।
सारा शरीर अपना, रोम-रोम अपने, रंग और रक्त अपना, अंग प्रत्यंग अपने, किन्तु जुबान दूसरे की, यह कहाँ की सभ्यता और कहाँ की मनुष्यता है। – रणवीर सिंह जी।
वाणी, सभ्यता और देश की रक्षा करना सच्चा यज्ञ है। – ठाकुरदत्त शर्मा।
हिन्दी व्यापकता में अद्वितीय है। – अम्बिका प्रसाद वाजपेयी।
हमारी राष्ट्रभाषा की पावन गंगा में देशी और विदेशी सभी प्रकार के शब्द मिलजुलकर एक हो जायेंगे। – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
नागरी की वर्णमाला है विशुद्ध महान, सरल सुन्दर सीखने में सुगम अति सुखदान। – मिश्रबंधु।
साहित्य ही हमारा जीवन है। – डॉ. भगवानदास।
मनुष्य सदा अपनी भातृभाषा में ही विचार करता है। – मुकुन्दस्वरूप वर्मा।
बिना भाषा की जाति नहीं शोभा पाती है। और देश की मार्यादा भी घट जाती है। – माधव शुक्ल।
हिंदी और उर्दू एक ही भाषा के दो रूप हैं और दोनों रूपों में बहुत साहित्य है। – अंबिका प्रसाद वाजपेयी।
हम हिन्दी वालों के हृदय में किसी सम्प्रदाय या किसी भाषा से रंचमात्र भी ईर्ष्या, द्वेष या घृणा नहीं है। – शिवपूजन सहाय।
भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिन्दी प्रचार द्वारा एकता स्थापित करने वाले सच्चे भारत बंधु हैं। – अरविंद।
राष्ट्रीय एकता के लिये हमें प्रांतीयता की भावना त्यागकर सभी प्रांतीय भाषाओं के लिए एक लिपि देवनागरी अपना लेनी चाहिये। – शारदाचरण मित्र (जस्टिस)।
समूचे राष्ट्र को एकताबद्ध और दृढ़ करने के लिए हिन्द भाषी जाति की एकता आवश्यक है। – रामविलास शर्मा।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने के हेतु हुए अनुष्ठान को मैं संस्कृति का राजसूय यज्ञ समझता हूँ। – आचार्य क्षितिमोहन सेन।
हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है, इसमें कोई संदेह नहीं। – अनंत गोपाल शेवड़े।
अरबी लिपि भारतीय लिपि होने योग्य नहीं। – सैयदअली बिलग्रामी।
हिन्दी को ही राजभाषा का आसन देना चाहिए। – शचींद्रनाथ बख्शी।
अंतरप्रांतीय व्यवहार में हमें हिन्दी का प्रयोग तुरंत शुरू कर देना चाहिए। – र. रा. दिवाकर।
हिन्दी का शासकीय प्रशासकीय क्षेत्रों से प्रचार न किया गया तो भविष्य अंधकारमय हो सकता है। – विनयमोहन शर्मा।
अंग्रेजी इस देश के लिए अभिशाप है, यह हर साल हमारे सामने प्रकट होता है, फिर भी उसे हम पूतना न मानकर चामुण्डमर्दिनी दुर्गा मान रहे हैं। – अवनींद्र कुमार विद्यालंकार।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं को हानि नहीं वरन् लाभ होगा। – अनंतशयनम् आयंगार।
संस्कृत के अपरिमित कोश से हिन्दी शब्दों की सब कठिनाइयाँ सरलता से हल कर लेगी। – राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन।
(अंग्रेजी ने) हमारी परम्पराएँ छिन्न-भिन्न करके, हमें जंगली बना देने का भरसक प्रयत्न किया। – अमृतलाल नागर।
संस्कृति
संस्कृति बचाना, किसी पक्ष की ज़ायदाद नहीं,चल चित्रों के विरोधी, धरोहर संवारने आमाद नहीं (आमाद = ईच्छा शक्ति) कुछ सालों से और पिछले दो दशकों से ख़ास तौर पर आए दिन संस्कृति के जतन के नाम पर कहीं उत्सवों पर … Continue reading →
पिता
सहरे की असहनीय धूप को भी सहता है पिता,ग्रीष्म की गर्मी में गुलमहोर सा निखरता है पिता भले हो भीगा, उन का प्रस्वेद से लथबथ तनबदन,फिर भी मेहनत की खुशबू से महकता है हर पिता, ज़िंदगी की भगदौड़ में परिवार … Continue reading →
मां
तू ही है मेरा जहां, तुम बिन मैं जाऊं कहां?तेरी गोद सी जन्नत और कहीं मैं पाऊं कहां? तेरे हाथ का निवाला, प्यार भरा चांदी का प्याला,मेरी मनपसंद हर रसोई, बिन तेरे संग मैं खाऊं कहां? तेरे गाने की लोरी, … Continue reading →
तमाम
रोज़ वही सुबह और वही शाम होती है,ज़िंदगी ख्वाहिशों के नाम तमाम होती हैकरते हैं सियासत अपने वजूद के खातिर,मिले गरीब को रोटी ऐसी न इंतमाम होती हैइल्ज़ाम ना लगाओ सिर्फ हुकुमत पे ही यारों,सरकार वैसी ही बनती है, जैसी … Continue reading →
मय
मय को भी मुझ से पहली बार में यारी हो गई,महबूबा की तरह मुझ से जान से प्यारी हो गई इल्म घूला है या छीपा है जादुई करिश्मा शराब में,छूते ही लबों को सारी दुनिया उजियारी हो गई कौन कहता … Continue reading →
गुलाल
उन की आशिकी में हम हलाल हुएफ़ना हो कर जग में जलाल हुए माना कि हार गए खेल मुहब्बत काफिर भी ना कोई मन में मलाल हुए भूला ना पाए वो कभी दास्तां हमारीपढ़े जो खत खून के आंसू से … Continue reading →
ख़बर
तेरी ख़बर के बग़ैर मेरी फ़ज़र नहीं होती,तेरे दिल को क्यूँ, ये ख़बर की ख़बर नहीं होती मशरूफ हो फिर भी चाँद सी झलक दिखला जाओ,जिंदगी की सारी रात इंतजा़र में बसर नहीं होती कायनात भी करती है मकसद पूरा … Continue reading →
ताज़गी
तुम मेरे दिल के करीब आके अब मुझ से यूं दूर जाओ ना, जैसे मैं आ रहा हूं तुम्हारे करीब तुम भी मेरे पास आओ ना गुनगुना रहें है होठ मेरे खुशी से मिलन की मस्ती भरे गीत,तुम भी संग … Continue reading →
नियाज़
भरी भीड़ में भी वो तन्हा क्यों है उस का राज़ ना पूछो,नाखुश है जमाने से? या है ख़ुद से ही है नाराज़? ना पूछो! मिलता नहीं सभी को जादुई चिराग़, सीने में होती है जज्बे की आग,तभी खिलता है … Continue reading →
रुकावट
रुकावट ही तेरी उम्रभर की थकावट दे गई है हमें,ऐतबार किया था वो ही दोस्ती अदावत दे गई है हमें समझा था जो रास्ता है जाना पहचाना अरसों से,वही मंज़िल की चिकनी राहें गिरावट दे गई है हमें, मालूम है … Continue reading →