Monthly Archives: July 2020

बेफिक्र

मैंने सूखें पहाड़ के बदन को चीखते देखा,दो जिस्मों की सुलगती आग को भीगते देखा, मुरझा गया था जो बाग, पतझड़ के मौसम मेंउस उजड़े चमन को खुशियों से खिलते देखा पता है शीशा और ऐतबार टूट के फिर जुड़ते … Continue reading

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मिराज़

कमल की कलम से तुम ही हो मर्ज, तुम ही इलाज़,तुम ही हो कर्ज, तुम ही ब्याज तुम ही हो फर्ज़, तुम ही राज़,तुम ही हो रस्म, तुम ही रिवाज़ तुम ही हो रूबाब, तुम ही असबाब,तुम ही ख्वाब, तुम … Continue reading

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हबीब

चंद पल में ही हमें वो हबीब लगने लगे,दूर हैं मिलों पर दिल के करीब लगने लगे, जानता नहीं था जिन्हें पल भर पहले,घड़ी दो घड़ी में खुशनसीब लगने लगे कल तक साथ रहते थे सुख में साये की तरह,आज … Continue reading

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