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तमाम

रोज़ वही सुबह और वही शाम होती है,ज़िंदगी ख्वाहिशों के नाम तमाम होती हैकरते हैं सियासत अपने वजूद के खातिर,मिले गरीब को रोटी ऐसी न इंतमाम होती हैइल्ज़ाम ना लगाओ सिर्फ हुकुमत पे ही यारों,सरकार वैसी ही बनती है, जैसी … Continue reading

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